गुरुवार, 19 मई 2011

अखबारों का सच --- मीनाक्षी स्वामी

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अखबारों में घोषणा होती है
कल बारिष हो सकती है
और जनता सम्हाल लेती है
भारी भरकम रेनकोट और छतरियां
सारे के सारे कागज पोलेथिन संस्कृति में
और तैयार हो जाती है
बारिष से जूझने को
अखबार लिखते हैं
कल टेम्प्रेचर तीन था
और जनता को लगने लगती है सर्दी
ओह ! कल इतनी सर्दी थी...!
हां-हां सचमुच थी
और यही आलम होता है
तमाम संभावनाओं का
मौसम ही नहीं हर मामले में
जनता एक छोटे बच्चे सी मान लेती है
अखबारों का सच ।

20 टिप्‍पणियां:

  1. इस आपा-धापी भरी जिन्दगी में आदमी को पता ही नहीं चलता कि कब मौसम बदल गया.... आदमी को भूख लगने कि सूचना भी अख़बार ही देता है.....अन्यथा वह तो इसे भुलाये बैठा है..

    सुन्दर कविता के लिए आभार

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  2. बहुत सच कहा आपने, यही कारण है कि हम बहला दिये जाते हैं।

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  3. मीनाक्षी जी ,

    ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है ... आप जैसी विदुषी ने मेरी रचना की सराहना की ..कृतज्ञ हूँ ..आभार आपका ..और इसी वजह से आपसे यहाँ परिचय का अवसर मिला ..

    आपकी फिलहाल कहानी छोड़ कर सारी ही पोस्ट पढ़ ली हैं ... आपका लेखन विशेष आकृष्ट करता है .. आगे भी बहुत कुछ पढने को मिलेगा ..

    अखबार का सच सटीक रचना है ...

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  4. बहुत ही सटीक सच बयां किया है अखबारों का।

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  5. मीनाक्षी जी आपने आम आदमी की मनोवृत्ति को खूब उकेरा है ।

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  6. मौसम ही नहीं हर मामले में
    जनता एक छोटे बच्चे सी मान लेती है
    अखबारों का सच ।

    बहुत सही कहा है...सुन्दर प्रस्तुति

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  7. बचपन की एक बात याद आ रही है। मुझे नए जूते दिलाए गए, मैं बहुत उत्साहित था कि कल नए जूते पहनने हैं। सुबह अखबार देख लिया, बारिश की आशंका जाहिर की गई थी। मैने कहा मुझे जूते खराब नहीं करने हैं, और शाम तक बारिश नहीं हुई।
    सच में मजा आ गया आपकी ये रचना पढकर और पुरानी यादें ताजी हो गई।

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  8. अखबारों के सच की तरह ही इस देश का सच भी आपने बता दिया .दुल्हन वही जो डॉ अरोड़ा सेंगर पूरा वाले दिलाएं
    सच वही जो अखबार वाले बतलावें ।
    एंटी -इंडिया -टी वी (एन डी टी वी )बतलावे ।
    इनके लिए एक शैर :
    जिन्हें पहचान नहीं गुंचा और गुल की ,
    चमन हो गया आज उनके हवाले .

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  9. सच यह भी है :दिस हेपिंस ओनली इन इंडिया .यहाँ मौसम की भविष्य वाणी सोलह आना सही उतरती है ,यदि तीन बजे बाद दोपहर बर्फ गिरने की बात कही गईहै
    तो ठीक तीन बजे फाये (फ्लाक स्नो के )नीचे आने लागतें हैं .वैसे भी तहां एक सिस्टम है .लोग उसे माने यह देखने के लिए उसके पीछे एक और सिस्टम हैं ।
    ४३३०९,सिल्वर वुड ड्राइव ,केंटन ,मिशगन ४८ १८८ -१७८१
    भारत का क्या हैकथित सेक्युलर राज में जनता को चाहे जैसे बहका लो .

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  10. यही आलम होता है
    तमाम संभावनाओं का
    मौसम ही नहीं हर मामले में
    जनता एक छोटे बच्चे सी मान लेती है
    अखबारों का सच ।... aur ab tak sach ka pahlu nahi samjha

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  11. इन दिनों हम भी यही कर रहे हैं । अगले दिन अखबार में विगत दिन का तापमान देखते हैं और कहते हैं , अच्छा तो कल इतनी गर्मी थी ।

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  12. डाक्टर साहेब आपकी आज एक राजस्थानी बोली में टिप्पणी देखी ।एक अच्छी व्यंगात्मक रचना कि जब वे टेम्परेचर कम बताते है जो जनता को सर्दी लगने लगती है । ऐसे ही बारिस के समाचार भी । बैसे इनके समाचार 50 प्रतिशत सही होते है क्योंकि ये कहते है कि ""कल बारिस हो सकती है और नहीं भी हो सकती ""

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  13. सही कहा आपने......बहुत ही बढ़िया !
    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान

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  14. आदरणीया मीनाक्षी जी
    सादर नमस्कार !

    जनता एक छोटे बच्चे सी मान लेती है्…
    रचना अच्छी है …बधाई !

    … लेकिन ताज़ा घटनाक्रम देखते हुए जनता को जागने की ज़रूरत है … बचपना छोड़ कर मनन मंथन करने की आवश्यकता है …

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  15. अखबारों में घोषणा होती है
    कल बारिष हो सकती है
    और जनता सम्हाल लेती है

    ye to mausam vibhag ki galti hai na....jab janta ko maalum hai to wah akhbaaron ki baat sach kyun maan leti hain@!!!

    ha, kaafi had tak saarthak rachna......

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  16. जनता एक छोटे बच्चे सी मान लेती है
    अखबारों का सच
    kitna bada sach....khol kar rakh diya aapne.

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  17. मैने आपकी कविता

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