रविवार, 6 फ़रवरी 2011

लड़की की मुट्ठी में --- मीनाक्षी स्वामी

लड़की की मुट्ठी में   
                               
लड़की नहीं जानती
लड़की की ताकत
लड़की है नदी,
लड़की है झरना,
लड़की है पहाड़,
लड़की है पेड़,
पेड़ की डाल है लड़की
पेड़ से कटकर भी जलती है, लड़की
अलाव की आग बनकर
सुलगती है, लड़की
सुलग-सुलगकर राख नहीं होती है
सुलग-सुलगकर बनती है, लड़की
दहकता हुआ अग्निपुंज
और खाक कर देती है
समूचे डरावने जंगल को
लड़की मुट्ठी में
बंद हैं बीज
बीज सपनों के, फलों से लदे-फंदे
उंगलियों के इशारों पर
तय करती है, लड़की
हवाओं की दिशाएं
लड़की की खिलखिलाहट
लौटा लाती है बसंत