सोमवार, 15 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस और राष्ट्रीय एकता --- मीनाक्षी स्वामी

स्वतंत्रता दिवस और राष्ट्रीय एकता आलेख

आजादी पाकर चौंसठ वर्ष हो गए। हमारे पास, आजादी को पाने का राष्ट्रीय आंदोलन का गौरवशाली इतिहास है। मगर इसे अंगूठा दिखाता हमारा वर्तमान हमारी एकता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। एक उफान,-उछाल और उत्साह के साथ बहती, किलकारी मारती हुई वेगवती नदी सी राष्ट्रीय एकता इन चौंसठ सालों के अंतराल में खंड-खंड बंटकर सूखी पतली धार सी होकर ठहर ही गई है।
तब इस वेगवती नदी को कोई पार नहीं कर सकता था, बल्कि इसने तो बाहरी तत्वों को अपनी लहरों से उछाल से बाहर फेंक दिया था पर अब इसी सूखी-पतली धार को तो कोई भी पार कर सकता है। तब अंग्रेजों के विरूध्द राष्ट्रीय एकता चरम सीमा पर थी। उस वक्त भारत के सारे धर्म, जाति, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय सब ‘भारतीयों’ के रूप में उभरे थे। इसी भारतीयता की ताकत ने लंबे समय से षासन कर रहे अंग्रेजों को खदेड़कर बाहर कर दिया था।
अब प्रजातंत्र है, जनता के पास असीमित शक्ति है, फिर भी वह स्वार्थी तत्वों की कठपुतली बन देश को विघटन की ओर ले जा रही है।
यह खेदजनक है कि आज नागरिकों के बीच किसी न किसी तुच्छ आधार को लेकर अविश्वास की ऊंची दीवार खिंची हुई है। जनता के सामने न कोई आदर्श नेता है न मार्गदर्शक। इसी कारण वह राह भटक रही है।
जब नागरिक संकुचित और तुच्छ स्वार्थों से उपर उठकर ‘हम’ की भावना का अनुभव करेंगें। अपने छोटे से समूह के प्रति नहीं वरन् सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रति। तभी बंधुत्व की भावना से नागरिक आपस में जुड़े रह सकेंगें।
यह कार्य चुनौती भरा है पर कठिन नहीं।
क्योंकि
सच तो यह है कि हमारी राष्ट्रीय एकता चुकी नहीं है। यह मौजूद है, हमारे भीतर स्थित प्राणों की तरह। समय-समय पर यह दिखाई भी देती है, जब हम प्राकृतिक प्रकोपों के समय सारे भेद-भाव भूलकर भारतीय हो जाते हैं। जब हम प्रेम के गुलाल और स्नेह के रंगों से भीगते हैं। ईद की सिवैयों से मुंह मीठा करते हैं। तब हम अपने विधर्मी पड़ौसी के सुख-दुख के साथी होते हैं। खासकर विदेशों में, जब हम सिर्फ भारतीय होते हैं-हिंदू, मुस्लिम, सिख, कश्मीरी या बंगाली नहीं।
यही हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता का सकारात्मक पहलू है, जो आशा का द्वार दिखाता है।
जरूरत है इस द्वार पर दस्तक देने की।
अभी भी देर नहीं हुई है, उजाला बाकी है बहुत, धूप भी बिखरी है। जरूरत है अपने मन-मस्तिष्क की उदारवादी खिड़कियों को खोलकर सद्भाव, प्रेम और मित्रता की रोशनी को भीतर आने देने की। तब एकता और सद्भाव की नई कोंपलें फूटेंगीं और होगा वसंत का नवपल्लवन।
इसी आशा के साथ स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।